उर उसी पी को पुकारे
झिलमिलाते से सितारे
झील के जल में निहारें,
रात की निस्तब्धता में
उर उसी पी को पुकारे !
थिर जल में कीट कोई
खलबली मचा गया है,
झूमती सी डाल ऊपर
कोई खग हिला गया है !
दूर कोई दीप जलता
राह देखे जो पथिक की,
कूक जाती पक्षिणी फिर
नींद खुलती बस क्षणिक सी !
स्वप्न ले जगत सारा
रात्रि भ्रम जाल डाले,
कालिमा के आवरण में
कृत्य
कितने ही निभा ले !
आपकी लिखी रचना बुधवार 06 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी........
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंउर उसी को पुकारे--बहुत खूबसूरत,भावाव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंस्वप्न ले जगत सारा
जवाब देंहटाएंरात्रि भ्रम जाल डाले,
कालिमा के आवरण में
कृत्य कितने ही निभा ले !.........बहुत सुन्दर
सावन का आगमन !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
यशोदा जी, रविकर जी, प्रतिभा जी, मन जी, कालीपद जी, कुंवर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
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