गुरुवार, मई 31

बापू से आज तक


बापू से आज तक

जिसने भी सुने होंगे वे दिव्य वचन
लगा होगा, व्यर्थ ही है
 इसी तरह और जिए चले जाना....

बदलना होगा..
आमूल-चूल परिवर्तन चाहिए ही
ऐसा ही लगा होगा
किन्तु ऐसा करके बना लिये होंगे
अनेक विरोधी उसने

जो प्रमुख थे 
वे तैयार नहीं थे सुनने को
जो सीख रहे थे
 उनके पास अधिकार नहीं थे

जो मानते थे स्वयं को चतुर
उनकी वास्तविक बुद्धिमानी तो
अभी प्रकट ही नहीं हुई थी

पहले भी हुए थे ऐसे महान
वह भी इस कड़ी में अंतिम नहीं होगा
यह भी पता है उसे
यह श्रंखला जारी रहेगी 
जाने कब तक
सत्य का आधार
 चेतना को ही माना था उसने
और यह कोई दोष तो नहीं...

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया...............

    जो प्रमुख थे
    वे तैयार नहीं थे सुनने को
    जो सीख रहे थे
    उनके पास अधिकार नहीं थे....

    यही तो विडम्बना है ....
    सार्थक अभिव्यक्ति अनीता जी...

    अनु

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  2. पहले भी हुए थे ऐसे महान
    वह भी इस कड़ी में अंतिम नहीं होगा
    यह भी पता है उसे
    यह श्रंखला जारी रहेगी
    जाने कब तक
    सत्य का आधार
    चेतना को ही माना था उसने
    और यह कोई दोष तो नहीं...

    सटीक चिंतन .... ऐसे लोग आते रहे हैं और आयेंगे भी ...

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  3. अति सुन्दर कविता।

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  4. बहुत ही सुंदर और आपकी शैली से कुछ अलग अभिव्यक्ति।

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  5. यही सत्य है सुन्दर प्रस्तुति

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  6. जरुरी है इनका आना, जारी रहे ये श्रंखला ...

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  7. सुंदर शैली कुछ अलग सी ....

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  8. सत्य कहा ..सत्य का हमेशा से विरोध होता आया है..फिर उसकी महत्ता भी स्थापित हुई है..अति सुन्दर रचना..

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  9. जिसने सत्य के साथ प्रयोग किया हो, सत्य से उसका साक्षात्कार होना ही है।

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  10. सत्य तो सत्य ही होता है.. सुन्दर रचना...

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  11. सत्यमं, शिवमं, सुन्दरम,यही सत्य है,,,,
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,

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  12. यह श्रंखला जारी रहेगी
    जाने कब तक
    सत्य का आधार
    चेतना को ही माना था उसने
    और यह कोई दोष तो नहीं...

    ....सत्य की स्थापना की श्रंखला जारी रहनी ही चाहिए...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार

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