एक असीम गीत भीतर है
निर्मल जैसे शुभ्र हिमालय
स्वयं अनंत है व्यक्त न होता
यही उहापोह मन को डसता !
एक असीम गीत भीतर है
गूंज रहा जो प्रकट न होता
यही उहापोह मन को खलता !
खिल न पाता हृदय कुसुम तो
कलिका बनकर भीतर घुटता
यही उहापोह मन में बसता !
सुरभि निखालिस कैद है जिसकी
ज्योति अलौकिक कोई ढकता
यही उहापोह लिये तरसता !
सबके उर की यही कहानी
कह न पाए कितना कहता
देख उहापोह मन है हँसता !
सही कहा सब के ह्रदय असीम भावो के ओत-प्रोत है..कुछ व्यक्त हो जाते है कुछ दबे रह जाते हैं.. सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंsundar..............
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाए हमेशा उत्साह ,एक नई ऊर्जा का संचार करती हैं.....!!
जवाब देंहटाएंएक असीम गीत भीतर है
जवाब देंहटाएंगूंज रहा जो प्रकट न होता
यही उहापोह मन को खलता !
सच में.....
कभी-कभी.....
अभी भी....!!
सबके उर की यही कहानी
जवाब देंहटाएंकह न पाए कितना कहता
अक्षरशः सत्य!
बेहद खूबसूरत रचना ...आभार
जवाब देंहटाएंऊफ़्फ़ यह उहापोह
जवाब देंहटाएंसबके उर की यही कहानी .....सचमुच....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना...
सादर।
bhaut hi sundar abhivaykti....
जवाब देंहटाएंये उहापोह चलता ही रहता है शायद उम्र भर....सुन्दर प्रस्तुति।
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