बच्चे
मुस्कानों की खेती करते
स्वयं हँसते औरों को हँसाते
सदा बिखेरें धूप ख़ुशी की
न गम के बादल उन पर डालो !
अपनापन झलके आँखों से
अधरों से विश्वास टपकता,
जैसे रब से डोर बंधी हो
खुले नहीं ये देखो भालो !
पल-पल में उजास बिखराते
अभी स्वच्छ है पट अंतर का
वे जीवन हैं, वे आशा हैं
न भटकें वे, उन्हें संभालो !
जीवन घट रस से भर लाये
छोटे-बड़े का भेद न जानें,
अपना यह, वह कोई दूजा
उनके दिल में भेद न डालो !
स्वप्न वही हैं मानवता के
मित्र हैं ऐसे निकट हृदय के,
नहीं दिखावट नहीं शिकायत
उनकी फ़ितरत सदा संभालो !
यही मुस्कुराहट ही जीवन के मायने हैं ..
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने अमृता जी, इस मुस्कुराहट को ताउम्र संभाल कर जो रख ले वही...मुक्त है
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम
स्वप्न वही हैं मानवता के
जवाब देंहटाएंमित्र हैं ऐसे निकट हृदय के,
नहीं दिखावट नहीं शिकायत
उनकी फ़ितरत सदा संभालो !
....सच में जरूरत है बच्चों के बचपन को सुरक्षित रखने की...बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...
आभार कैलाश जी !
हटाएंपल-पल में उजास बिखराते
जवाब देंहटाएंअभी स्वच्छ है पट अंतर का
वे जीवन हैं, वे आशा हैं
न भटकें वे, उन्हें संभालो !
मुस्कानों की खेती करते
स्वयं हँसते औरों को हँसाते
सदा बिखेरें धूप ख़ुशी की
न गम के बादल उन पर डालो !
गम पे धुल डालो कहकहा लगा लो ,
कांटो की डगरिया जिंदगानी है तुम जो मुकुरा दो राजधानी है। ..
बच्चे मन के सच्चे ,अच्छों से भी अच्छे
वीरू भाई..सही कहा है आपने
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार - 25/09/2013 को
जवाब देंहटाएंअमर शहीद वीरांगना प्रीतिलता वादेदार की ८१ वीं पुण्यतिथि - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः23 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबच्चे मन के सच्चे ……एक भोली सी सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इमरान
हटाएंकाश! ये बच्चे कम से कम 10 साल तक पढ़ाई लिखाई के झंझट से उन्मुक्त हो ऐसे ही घूम पाते।
जवाब देंहटाएंपढ़ाई तो करें पर वह मात्र सूचनात्मक न हो..सीखने की ललक बच्चों में बहुत होती है..
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