नींद में ही सही...
कुछ स्मृतियाँ कुछ कल्पनाएँ
बुनता रहता है मन हर पल
चूक जाता है इस उलझन में
आत्मा का निर्मल स्पर्श....
यूँ तो चहूँ ओर ही है उसका
साम्राज्य
घनीभूत अडोल वह है सहज ही
ज्ञातव्य
पर डोलता रहता है पर्दे पर
खेल
मन का अनवरत
तो छिप जाती है आत्मा
असम्भव है जिसके बिना मन का होना
उसके ही अस्तित्त्व से बेखबर है यह छौना
नींद में जब सो जाता है मन कुछ पल को
आत्मा ही होती है भीतर
तभी नींद सबको इतनी प्यारी है
नींद में ही हो जाती है खुद से मुलाकात
पर अफ़सोस ! नहीं हो पाती तब
भी उससे बात
जागरण में तो दूर हैं ही उससे
शयन में भी हो जाते हैं दूर उससे
कब होगा वह ‘जागरण’
जब जगते हुए भी प्रकटेगी वह और नींद में भी....
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
अनिता जी, बड़ी ही सुन्दरता का साथ जीवन की एक बड़ी सच्चाई से रू ब रू करवाया है आपने
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात कही आपने नींद तो वरदान है प्रभु का |
जवाब देंहटाएंजिस दिन खुद से खुद की मुलाक़ात हो जाएगी, भूल जायेंगे खुद से खुद का अंतर...बहुत प्रभावी और गहन अभिव्यक्ति...आभार
जवाब देंहटाएंयादें याद आती है :)
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द चित्र
सुन्दर भाव उकेरा है..अनीता जी आप ने..
जवाब देंहटाएंरविकर जी, माहेश्वरी जी, इमरान, मुकेश जी, शालिनी जी, कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ..
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