शनिवार, जनवरी 11

रस मकरंद बहा जाता है

रस मकरंद बहा जाता है



अंजुरी क्यों खाली है अपनी
रस मकरंद बहा जाता है,
साज सभी सजे महफिल में
सन्नाटा क्यों कर भाता है !  

रोज भोर में भेज संदेसे
गीत जागरण वह गाता है,
ढांप कर्ण करवट ले लेता
खुद से दूर चला जाता है !

त्याज्य हुआ यहाँ अभीप्सित
हाल ना कुछ कहा जाता है,
बैठा है जो घर के अंदर
दूर जान छला जाता है !

पीठ दिखाए उसको बैठे
बिन जिसके न रहा जाता है,
क्यों कर दीप जले अंतर में
सारा स्नेह घुला जाता है !


2 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच अवसर किसी की प्रतीक्षा नही करता । राह में बिखरे फूलों को जितने चुन सकें वे ही हमारे हैं पर परवाह किसे है ।

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  2. गिरिजा जी, आपने सही कहा है..स्वागत व आभार !

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