शनिवार, जनवरी 4

अब तो कुछ बात हो

अब तो कुछ बात हो


फूलों से बात करें, बिछौना बने घास
डालियों के साथ झूमें, निहारें आस-पास

चाँद संग होड़ लगे, चाँदनी संग हम भी जगें
सो लिए बरसों बरस, अब तो प्रमाद छंटे

जीवन को मांग लें, अनकही प्रीत को
सीख लें कुदरत से, बंटने की रीत को

स्वप्नों को तोड़ दें, सच से मुलाकात हो
भरमाते उम्र बीती, अब तो कुछ बात हो

आँखों में डाल आँखें, खुद से भी मिलें कभी
होना ही काफी है, बन न कुछ पाए कभी

होकर ही जानेंगे, कुदरत का हैं हिस्सा
जाने कब आँख मुँदे, बन जाएँगे किस्सा


10 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar rachna ................kudrat ka hissa ............sundar bhav......

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  2. काफी उम्दा प्रस्तुति.....

    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-01-2014) को "तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483" पर भी रहेगी...!!!

    आपको नव वर्ष की ढेरो-ढेरो शुभकामनाएँ...!!

    - मिश्रा राहुल

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  3. फूलों से बात करें, बिछौना बने घास
    डालियों के साथ झूमें, निहारें आस-पास

    चाँद संग होड़ लगे, चाँदनी संग हम भी जगें
    सो लिए बरसों बरस, अब तो प्रमाद छंटे
    बहुत खुबसूरत !
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |

    नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति

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  4. जीवन को मांग लें, अनकही प्रीत को
    सीख लें कुदरत से, बंटने की रीत को

    वाह ! क्या कहने ! बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति ! बहुत खूबसूरत रचना !

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  5. सुन्दर प्रस्तुति -
    आभार आपका-
    सादर -

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  6. सच है बहुत कुछ है कुदरत से सीखने को रीत, प्रति सभी कुछ तो है ...सार्थक भाव लिए सुंदर भवाभिव्यक्ति....

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  7. बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति !..आभार

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  8. जीवन को मधुर हास्य की तरह जीना ... सहज जीना... ही तो जीवन है ...

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