सोमवार, जून 16

कह रहा है वह

कह रहा है वह 



दो घड़ी तो बैठो मेरे पास भी
हर वक्त कुछ न कुछ काम लिए रहते हो
कभी सुनाते कानों को संगीत
दिखाते कभी आँखों को मोहक दृश्य
कभी अख़बार के पन्ने पलटने को ही
इतना आवश्यक मान लेते कि
अनसुनी कर देते हर पुकार  
फुर्सत कहाँ हैं तुम्हें मुझसे मिलने की
 घट रहा है सामने प्रकृति का इतना बड़ा चमत्कार
उसे पल भर निहारने की
रंगों का खजाना उड़ेले जाती है धरा
 पवन व सूर्य के साथ मिलकर आकाश में
जल के बिना कहाँ सम्भव होगा यह
 मौन वह प्रतीक्षारत है
प्रियतम को पुकार लगाते किसी प्रेमी की
जीवन भरपूर है चारों ओर
फूटा पड़ रहा है... पर तुम  
खोये हो अपनी ही बनाई एक स्वर्ण की दुनिया में
जो माया मृग की तरह कभी हाथ नहीं आती
 हवाएं शीतल हैं बाहर और भीतर
 दोनों तापों को हरने में सक्षम
आकाश अनंत है हर दुःख को मिटाने में समर्थ
 दो घड़ी तो छोड़ दो सारे काम
तभी मिलेगा अन्तर्वासी राम !

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति की टेर सुन ले मनुष्य तो उसे आनन्द खोजने के लिए मरीचिकाओं नें न भटकना पड़े - पर वह ध्यान दे तब न !

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  2. जब मिलेंगे अन्तर्वासी राम तभी पाएगी आत्मा विश्राम … सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...

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  3. सही कहा निरंतर कितना कुछ घाट रहा है पर हमे वर्तमान में जीने की फुर्सत ही कहाँ

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  4. प्रतिभा जी, संध्या जी व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !

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