मंगलवार, दिसंबर 2

शांत झील के दर्पण पर

शांत झील के दर्पण पर



जैसे कोई फूलों वाली
डाल अचानक झर जाए,
या फिर तपती भू पर बादल
बरबस यूँ ही बरस जाए !

हो निस्तब्ध रात्रि बेला
बिखरी हो ज्योत्स्ना मधुरिम,
शांत झील के दर्पण पर या
सोया हो पंकज रक्तिम !

नील गगन में ओढ़े बदली
लुक-छुप नाज दिखाए चंदा,
भोर अभी होने को ही हो
पंछी का हो स्वर मंदा !

वैसा ही उसका आना है
बरसों जिसे पुकारा पाहुन,
उर उपवन दिप-दिप कर झूमे   
मदमाता मन का प्रांगण !

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर....अति सुन्दर !!

    सादर
    अनुलता

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  2. कल 04/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  3. अनु जी, ओंकार जी व प्रतिभा जी, स्वागत व आभार !

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  4. सुन्दर आभार ... जो मधुर रहता है ... उनका आभास ...

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