सोमवार, दिसंबर 22

उजाले से पीठ

उजाले से पीठ


पूर्व दिशा में ही उगा था ज्ञान का सूरज
जो आया इधर उसने जगमगा लीं अपनी राहें !
क्यों अँधेरे में रहे चले जाते हैं कुछ लोग
नहीं कि उन्हें जरूरत नहीं है रौशनी की
या कि चुंधिया जाती हैं उनकी आँखें
उजाले की चमक से
बस अभ्यास हो गया है उन्हें अन्धेरों का
वे छोड़ नहीं पाते काले लिबास
जिसपर कितने ही धब्बे लगें दिखाई नहीं देते
भय लगता है उन्हें श्वेत परिधान से
जिस पर लगा एक छींटा भी
कर सकता है उन्हें शर्मिंदा
अमरत्व की विरासत मिली है जिन्हें
मारकर दूसरों को कहलाते स्वयं को जिन्दा !

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