सोमवार, अगस्त 31

एक ही है वह

एक ही है वह

फूल नहीं ‘खिलना’ उसका
खग में भी ‘उड़ना’ भाए,
जग का ‘होना’ ही सुंदर है
‘बहना’ ही नीर कहलाए !

खिले ‘वही’ पुष्पों में कोमल
है उड़ान ‘उसके’ ही दम से,
‘उसका’ होना ही जगती का
वही ‘ऊर्जा’ नीर बहाए !

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