शुक्रवार, मार्च 18

थोड़ी सी हँसी


थोड़ी सी हँसी

फूल क्या लुटाते हैं ? इतना जो भाते हैं
थोडा सा रंग.. गंध थोड़ी सी
और ढेर सारी खिलावट !
नहीं उनके होने में
जरा सी भी मिलावट,
पास उनके है वही तो मात्र अपना
काया तो माटी से ली उधार है
जल और सूरज का भी उन पर उपकार है
खिलावट मात्र पर ही उनका अधिकार है

बच्चे क्या दे जाते हैं ? जो इतना लुभाते हैं
सहजता सरलता जो उनकी अपनी है
काया का कारण तो जनक-जननी है
भला है क्या हमारे पास कहने को अपना
डर नहीं कभी खोने का जिसका
थोड़ी सी हँसी, खालिस प्यार
शांति और प्रेम की बहती हुई धार !
शेष तो सब जगत से ही पाया है
जिसके होने से न कोई भी 'हो' पाया है
अपना आप ही लुटाना है
यदि फूलों सा मुस्काना है
झरनों सा गाना है
तितलियों सा इतराना है
बच्चों सा खिलखिलाना है !

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