प्रकाश की एक धारा
प्रकाश
की एक धारा
अनवरत
साथ बहती है
भले
नजर न आये सरस्वती सी
गहराई
की थाह नहीं जिसकी
और
शीतल इतनी कि गोद में उसकी
अग्नि
भी विश्राम पाती है !
उठती
लहरें अन्तरिक्ष तक ऊंची
छलक
जातीं बूंदें जहाँ-जहाँ
बन
जाती वह भूमि यज्ञ शाला
आचमन
करने वाला उर
तृप्त
हो जाता
उसके
सिवा कुछ भी जिसे
छू भी नहीं पाता
पावन
वह धारा
अजस्र
भीतर रहती है !
प्रकाश
की एक धारा
अनवरत
साथ बहती है !
प्रकृति को समेटलिया है आपने कविता में । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार, ओंकार जी व मधुलिका जी !
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