गुरुवार, अगस्त 3

हर पगडंडी वहीं जा रही

हर पगडंडी वहीं जा रही

कोई उत्तर दिशा चल रहे
दक्षिण दिशा किन्हीं को प्यारी,
मंजिल पर मिलना ही होगा
हर पगडंडी वहीं जा रही !

भर नयनों में प्रेमिल आँसू
जब वे गीत विरह के गाते,
बाना ओढ़े समाधान का
तत्क्षण दूजे भी जुड़ जाते !

‘तेरे’ सिवा न कोई दूजा
कह कुछ मस्तक नहीं उठाते,
केवल खुद पर दृष्टि जिनकी
स्वयं को मीलों तक फैलाते !

कहनेवाले दो कहते हैं
राज ‘एक’ है जिसने जाना !
भेद नहीं करते तिल भर भी  
राधा, उद्धव में कभी कान्हा !


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