शुक्रवार, अगस्त 3

मोहन की हर अदा निराली




मोहन की हर अदा निराली


माधव केशव कृष्ण मुरारी
अनगिन नाम धरे हैं तूने,
ज्योति जलाई परम प्रेम की
अंतर घट थे जितने सूने !

दिया सहज प्रेम आश्वासन
युग-युग में कान्हा प्रकटेगा ,
सुप्त चेतना दबी तमस में
हर बंधन से मुक्त करेगा !

सच की आभा सुहृद बिखेरे
अनुपम प्रतिमा सुन्दरता की,
हर उर में रसधार उड़ेले
  हर अदा निराली मोहन की !

वृन्दावन भू रज पावन है
परम सखा बन रास रचाए,
विरह अनवरत मिलन बना है
नाता स्नेहिल सदा निभाए !

दिव्य जन्म शुभ कर्म अनेकों
हैंं अनंत गाथाएं तेरी,
सुन-सुन अश्रु बहे नयनों से
जाने कितनी छवि उकेरीं !



3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार शिवम जी !

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  2. कृष्णा के अनेक रूप और हर रूप मन को मोहता है ... आध्यतम को प्रेरित करता है ..।
    बहुत ही रुहानी रचना ... सिल में उतरती है ...

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