मोहन की हर अदा निराली
माधव केशव कृष्ण
मुरारी
अनगिन नाम धरे
हैं तूने,
ज्योति जलाई परम
प्रेम की
अंतर घट थे जितने
सूने !
दिया सहज प्रेम
आश्वासन
युग-युग में कान्हा प्रकटेगा ,
सुप्त चेतना दबी
तमस में
हर बंधन से मुक्त
करेगा !
सच की आभा सुहृद
बिखेरे
अनुपम प्रतिमा
सुन्दरता की,
हर उर में रसधार
उड़ेले
हर अदा
निराली मोहन की !
वृन्दावन भू रज
पावन है
परम सखा बन रास रचाए,
विरह अनवरत मिलन
बना है
नाता स्नेहिल सदा निभाए !
दिव्य जन्म शुभ
कर्म अनेकों
हैंं अनंत
गाथाएं तेरी,
सुन-सुन अश्रु
बहे नयनों से
जाने कितनी छवि उकेरीं !
बहुत बहुत आभार शिवम जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकृष्णा के अनेक रूप और हर रूप मन को मोहता है ... आध्यतम को प्रेरित करता है ..।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रुहानी रचना ... सिल में उतरती है ...