शनिवार, अगस्त 11

अभी समर्थ हैं हाथ



अभी समर्थ हैं हाथ



अभी देख सकती हैं आँखें
चलो झाँके किन्हीं नयनों में
उड़ेल दें भीतर की शीतलता
और नेह पगी नरमाई
सहला दें कोई चुभता जख्म
कर दें आश्वस्त कुछ पलों के लिए ही सही
बहने दें किसी अदृश्य चाहत को
वरदान बनकर !

अभी सुन सकते हैं कान
चलो सुनें बारिश की धुन
और पूर दें
किसी झोंपड़ी का टूटा छप्पर
अनसुना न रह जाये रुदन
किसी बच्चे का
 न ही किसी पीड़ित की पुकार !

अभी समर्थ हैं हाथ
समेट लें सारे दुखों को झोली में
और बहा दें
तरोताजा होकर संवारें किसी के उलझे बाल
उदास मुखड़े और उड़े चेहरे से पूछें दिल का हाल !

अभी श्वासें बची हैं
जिसने दी हैं उसका कुछ कर्ज उतार दें
थोड़ा सा ही सही
उसकी दुनिया को प्यार दें !

3 टिप्‍पणियां:

  1. ye kitni sashakt Rachna hai… I think.. har ek ko ye padhna chahiye.. but sabse zyada unhe jo haar maan jaate hain..

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  2. जवानी के कान ऐसी पुकार सुनने लगे और हाथ ऐसे नेक काम मे हाथ बंटाए तो फिर यही धरा स्वर्ग है जो वास्तविक होगा कोरी कल्पना नहीं।
    अद्भुत रचना।


    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत रहेगा।

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    उत्तर
    1. स्वागत व आभार रोहितास जी, वाकई धरती पर स्वर्ग उतारना युवाओं का ही काम है

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