पाया परस जब नेह का
तेरे बिना कुछ भी नहीं
तेरे सिवा कुछ भी नहीं,
तू ही खिला तू ही झरा
तू बन बहा नदिया कहीं !
तू लहर तू ही समुन्दर
हर बूंद में समाया भी,
सुर नाद बनकर गूँजता
गान तू अक्षर अजर भी !
है प्रीत करुणा भावना
सपना बना तू भोर में,
छू पलक तू ही जगाता
सुख सम भरा हर पोर में !
तुझसे हृदय की धड़कनें
मृत्यु है तेरी गोद में,
श्रद्धा, सबूरी, अर्चना,
नव चेतना हर शब्द में !
भीतर मिला हर स्वर्ग बन
जीवन का सहज मर्म तू,
खोयी कहीं दुःख की अगन
हर नीति औ’ हर धर्म तू !
कतरा-कतरा विदेह बन
डूबा सरल उर भाव में,
पाया परस जब नेह का
मन खो गया इस चाव में !
कण-कण पगा रस माधुरी
भीगा सा मन वसन हिले,
तेरी झलक जब थिर हुई
उर में हजार कमल खिले !
मद मस्त हो उर गा उठा
जीवन बिखरता हर घड़ी,
तू ही निखरता भोर में
तू ही सजा तारक लड़ी !
तू ही गगन में चन्द्रमा
तू ही धरा पर मन हुआ,
रविकर हुआ छू ले जहाँ
तू ही खिला बन कर ऋचा !
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
परम पिता परमात्मा चरणों में समर्पित उत्तम रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार राजेन्द्र जी !
हटाएंउत्तम भाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, छाता और आत्मविश्वास “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी !
हटाएंबेहतरीन रचना है।
जवाब देंहटाएंअनिता जी ब्लॉग जगत में आप खासा प्रभावित करती है हमें।
स्वागत व आभार रोहितास जी !
हटाएंस्वागत व आभार सुशील जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है ....
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सदा जी !
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जवाब देंहटाएंतुझसे हृदय की धड़कनें
मृत्यु है तेरी गोद में,
भावयुक्त पंक्तियाँ
सुस्वागतम !
हटाएंतू ही तो समाया है सर्वत्र, हे परम-चेतन !
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका प्रतिभा जी, सही कह रही हैं आप..उसकी छाप जर्रे जर्रे पर है
हटाएंबहुत बढ़िया
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