बुधवार, मार्च 27

दूर कोई गा रहा है





दूर कोई गा रहा है

कौन जाने आस किसकी
किस बहाने आँख ठिठकी 
प्रीत की गागर बना दिल

बेवजह छलका रहा है !

चढ़ हवाओं के परों पर
अनुगूँज मुड़ जाती किधर
कौन उस पर कान देगा

सुर मधुर बिखरा रहा है !

बद्ध लय ना टूटती है
अनवरत बहती नदी है
मिल गयी निज लक्ष्य से जब

मौन अब बस छा रहा है !



(अभी-अभी दूर बैठे एक पक्षी की आवाज खिड़की से भीतर आ रही थी, फिर अचानक बंद हो गयी.) 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.3.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3288 ,में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 28 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. एक बेहतरीन पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद

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