तू
जर्रे जर्रे में छिपा है तू ही
बोलता है हर जुबां से तू ही,
हरेक दिल, हर जिगर का बाशिंदा
हर सवाल का जवाब है तू ही !
हर चुनौती इक खेल है जहाँ में
चप्पे-चप्पे पर बिछा है तू ही,
हर दर्द तुझसे मिलने का सबब
हरेक तरंग, हर लहर है तू ही !
किसलिए डरें, तंज करें जग पर
जब कि हर बात बनाता है तू ही,
तुझ से उपजा हर फलसफा जग का
तेरी रहमत जानता है तू ही !
हर फ़िक्र तुझसे दूर रखती है
हर निशां से झलकता है तू ही,
हर रस्ता मंजिल की तरफ जाता
इशारे दिए जाता है तू ही !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.11.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3533 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंकोई एक तो है जिसपर हम आँख मूँद के बिना शिकवा शिकायत के भरोसा करते हैं।
सही कहा है आपने, वही तो है जिसने यह सारा खेल रचा है
हटाएंहा सू तू ही है ... हर सिम्त तेरा नज़ारा ...
जवाब देंहटाएंजब सब कुछ उस पर ही है तो फ़िक्र काहे की ... जीवन आनद से कट जायेगा ... सुन्दर रचना ...
स्वागत व आभार ! फ़िक्र तो तभी होती है जब उससे दूरी होती है
हटाएंवाह !बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया
जवाब देंहटाएंसादर
स्वागत व आभार अनीता जी !
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