ख्वाब और हकीकत
कौन सपने दिखाए जाता है
नींद गहरी सुलाए जाता है
होश आने को था घड़ी भर जब
सुखद करवट दिलाए जाता है
मिली ठोकर ही जिस जमाने से
नाज उसके उठाए जाता है
गिन के सांसे मिलीं, सुना भी है
रोज हीरे गंवाए जाता है
पसरा है दूर तलक सन्नाटा
हाल फिर भी बताए जाता है
कोई दूजा नहीं सिवा तेरे
पीर किसको सुनाए जाता है
टूट कर बिखरे, चुभी किरचें भी
ख्वाब यूँही सजाए जाता है
हकी़कत को ज़रा विश्राम मिल जाता होगा ख्वाब में !
जवाब देंहटाएंयकीनन, वही विश्राम शायद लुभाता होगा मन को, स्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-11-2019) को ""हुआ बेसुरा आज तराना" (चर्चा अंक- 3511) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
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