बुधवार, जुलाई 29

साक्षी

साक्षी 

बनें साक्षी ? 
नहीं, बनना नहीं है 
सत्य को देखना भर है 
क्या साक्षी नहीं हैं हम अपनी देहों के 
शिशु से बालक 
किशोर से प्रौढ़ होते ! 
क्या नहीं देखा हमने 
क्षण भर पूर्व जो मित्र था उसे शत्रु होते  
अथवा इसके विपरीत 
वह  चाहे जो भी हो 
वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति 
क्या देख नहीं रहे हैं हम 
एक वायरस को दुनिया चलाते हुए 
थाली में रखे भोजन को 
‘मैं’ बन जाते हुए 
नित्य देखते हैं कली को खिलते 
नदियों को बाढ़ में बदलते 
भूमि को कंपते हुए
सिवा साक्षी होने के हमारा क्या योगदान है इनमें 
चीजें हो रही हैं 
हमें बस उनके साथ तालमेल भर बैठाना है 
जैसे बरसता हो बादल तो सिर पर एक छाता लगाना है  ! 


11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 30 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं