जिंदगी खुद राज अपने
व्यर्थ जो भी छूट जाये
सार्थक हृदय को लुभाये,
जिंदगी खुद राज अपने
खोल मंजिल पर बिठाये !
बस यही इक प्रार्थना हो
मौन गीतों में गुजाएँ,
चाह का हर बीज जलकर
रिक्त हो मन गुनगुनाये !
जो तुम्हारी कामना हो
हाथ से वह कर्म हो अब,
जो नचाता था अभी तक
हुक्म मन तेरा बजाए !
विमल गंगा बन बहा है
ज्ञान गीता का कहा है,
धर्म तुझसे पल रहा है
सत्य का यह ध्वज बताये !
गीता के ज्ञान से मौन की गंगा ... जिसने भी ये माया रची है वही बताता है सब कुछ ...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव ...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 08 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंउपयोगी रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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