अभय
भयाक्रांत मन विचार नहीं करता
वह केवल डरता है
अस्तित्त्व के साथ एक नहीं होता
संशय ही भीतर भरता है
स्वप्नों के में भी डरा जाते हैं उसे पशु और दानव
भूल ही जाता है वह कि देवों की संतान है मानव
भय खबर देता है कि अभी आस्था अधूरी है
अभय के लिए जागना जरूरी है
कि अनंत से जुड़े हैं हम
जो इस ब्रह्मांड का संचालक है
वही हमारा भी पालक है
भय की आँखों में झांकना होगा
उसके पार ही वह अभय बसता है
जो हर हाल में हँसता है
जीवन का मोह जिसे नहीं बांधता
उहापोह की अग्नि में मन को नहीं रांधता
अपनी ऊर्जा को नकार में नहीं खोता वह
सदा एक रस ही बहता है
भय का क्या काम वहाँ
जिस दिल में अभय रहता है !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 13 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिव्या जी !
हटाएंविचारों की सुन्दर श्रंखला।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शास्त्री जी !
हटाएंभय से सामना कारने में। भलाई है ... जितना जल्दी हो ये उतना जल्दी भागेगा ...
जवाब देंहटाएंभय अभय के बीच में सिमटी सुंदर रचना .. 🙏🙏🙏
सही कहा है आपने, आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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