सोमवार, फ़रवरी 22

दूजा निज आनंद में डूबा

दूजा  निज आनंद में डूबा

पंछी दो हैं एक बसेरा 

एक उड़े दूसरा चितेरा, 

निज प्रतिबिम्ब से चोंच लड़ाता

कभी जाल में भी फंस जाता !


कड़वे मीठे फल भी खाये 

बार-बार खाकर पछताए,

इस डाली से उस शाखा पर 

व्यर्थ ही खुद को रहा थकाए !


कुछ पाने की होड़ में रहता 

क्षण-क्षण जोड़-तोड़ में रहता, 

कभी तके दूजे साथी को 

जो बस देखे कुछ न कहता !


पलकों में जब नींद भरी हो 

फिर भी करता व्यर्थ जागरण,

दूजा  निज आनंद में डूबा  

देख रहा है उसका वर्तन !


 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सारगर्भित भावों से भरी अनुपम कृति..

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  2. लौकिक अलौकिक सन्दर्भो को जीती आपकी रचना अनुपम है..सादर प्रणाम

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  3. कुछ पाने की होड़ में रहता
    क्षण-क्षण जोड़-तोड़ में रहता,
    कभी तके दूजे साथी को
    जो बस देखे कुछ न कह,,,,,,,,,,,,, बहुत सुंदर गीत,

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  4. बहुत सुन्दर और हृदयग्राही भावों से सुसज्जित अनुपम अभिव्यक्ति।

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  5. आप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार !

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