सोमवार, मार्च 8

अमृत स्रोत सी

अमृत स्रोत सी



एक दिन नहीं 

वर्ष के सारे दिन हमारे हैं,

हर घड़ी, हर पल-छिन 

हमने जगत पर वारे हैं !


माँ सी ममता छिपी नन्ही बालिका में जन्मते ही 

बहना के दुलार का मूर्त रूप है नारी 

सारे जहान से अनायास ही नाता बना लेती 

चाँद-सूरज को  बनाकर भाई

पवन सहेली संग तिरती  !


हो बालिका या वृद्धा  

सत्य की राह पर चलना सिखाती  

नारी वह खिलखिलाती नदी है

जो मरुथल में फूल खिलाती !

धरती सी सहिष्णु बन रिश्ते निभाए 

परिवार की धुरी, समर्पण उसे भाए !


स्वाभिमान की रक्षा करना

सहज ही है आता  

श्रम की राह पर चलना भी सुहाता 

अमृत स्रोत सी जीवन को पुष्ट करती है 

आनंद और तृप्ति के फूल खिलाती 

सुकून से झोली भरती है !

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. ये लेखनी वो जो सच्चाई के करीब लेजाकर खड़ा कर दे। वाह।
    नई रचना गुजरे वक़्त में से...

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-3-21) को "नई गंगा बहाना चाहता हूँ" (चर्चा अंक- 4,001) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. स्त्री के पूरे जीवन को उतार दिया है । सुंदर रचना।

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  4. स्वाभिमान की रक्षा करना

    सहज ही है आता

    श्रम की राह पर चलना भी सुहाता

    अमृत स्रोत सी जीवन को पुष्ट करती है

    आनंद और तृप्ति के फूल खिलाती

    सुकून से झोली भरती है
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर सटीक एवं सार्थक।

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  5. अमृत स्रोत सी जीवन को पुष्ट करे जो उसे एक दिन में कैसे सीमित किया जा सकता है.

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  6. सटीक एवं सार्थक प्रभावशाली रचना !!

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