गुरुवार, अक्तूबर 21

शून्य का अर्थ

शून्य का अर्थ


घुटनों पर नोटबुक कलम हाथ में 

मानो कोरा काग़ज़ आमंत्रण दे 

दिल से होते 

कुछ बंध उतरे 

मन व हाथों में यह कैसा नाता है 

अंतर्जगत को जो पन्ने पर उकेर आता है 

अमूर्त को मूर्त किया 

शब्द का रूप दिया 

उपजे थे चेतना से 

कोई नहीं जिससे परे 

अंतत: शून्य को ही 

 कलम पन्ने पर उतारती 

लाख प्रयत्न करें पर 

जिसे हम पढ़ नहीं पाते 

क्या इसीलिए लोग कविता के 

अपने-अपने अर्थ लगाते !


9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
    'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. जी सही कहा आपने !हम कहां सब पढ़ या समझ पाते हैं जो रचनाकार शून्य भावों को उकेरा है।
    सुंदर गहन रचना।

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  3. जिज्ञासा जी व उर्मिला जी स्वागत व आभार!

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