रविवार, जनवरी 16

जब जागो तभी सवेरा है

जब जागो तभी सवेरा है 


चढ़ आया हो सूरज नभ पर 

निद्रा में गहन अँधेरा है, 

सही कह गए परम सयाने 

जब जागो तभी सवेरा है !


सोए-सोए युग बीते हैं 

जाने कब आँख खुले अपनी, 

निज हाथों से छलते खुद को 

तज पाते नहीं जब आसक्ति !


कुदरत चेताती है हर पल 

हम आदतों के ग़ुलाम बने, 

गुरु के वचनों को सदा भुला 

मन्मुख होकर जीते रहते !


जब बारी आती तजने की 

हम झट प्रकाश को तज देते, 

वह अंतर्यामी जाग रहा 

दस्तक ना उसके दर देते !


वह हर अभाव को हर लेता 

उसकी छाया में सब पलते, 

कोई कमी नहीं शेष रहे 

यदि उसके जैसे हो पाते !


10 टिप्‍पणियां:

  1. चढ़ आया हो सूरज नभ पर
    निद्रा में गहन अँधेरा है,
    सही कह गए परम सयाने
    जब जागो तभी सवेरा है !
    सुन्दर सार्थक और सराहनीय सृजन ।

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  2. मन पर छाप छोड़ने वाली रचना। सराहनीय ।

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  3. कुदरत चेताती है हर पल

    हम आदतों के ग़ुलाम बने,

    गुरु के वचनों को सदा भुला

    मन्मुख होकर जीते रहते.... बहुत सुंदर सृजन।

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  4. बहुत ही सुंदर व सार्थक रचना

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  5. संगीता जी, मीना जी, मिश्रा जी, अनीता जी, नितीश जी व मनीषा जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !

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  6. यदि केवल भाव संप्रेषित करने वाली कोई विधा होती तो शब्दों को कभी माध्यम नहीं होना होता । नि: शब्द .....

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    1. वाह! शब्दों के पार से भी आपकी प्रतिक्रिया पहुँच रही है अमृता जी!

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