जब जागो तभी सवेरा है
चढ़ आया हो सूरज नभ पर
निद्रा में गहन अँधेरा है,
सही कह गए परम सयाने
जब जागो तभी सवेरा है !
सोए-सोए युग बीते हैं
जाने कब आँख खुले अपनी,
निज हाथों से छलते खुद को
तज पाते नहीं जब आसक्ति !
कुदरत चेताती है हर पल
हम आदतों के ग़ुलाम बने,
गुरु के वचनों को सदा भुला
मन्मुख होकर जीते रहते !
जब बारी आती तजने की
हम झट प्रकाश को तज देते,
वह अंतर्यामी जाग रहा
दस्तक ना उसके दर देते !
वह हर अभाव को हर लेता
उसकी छाया में सब पलते,
कोई कमी नहीं शेष रहे
यदि उसके जैसे हो पाते !
सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंचढ़ आया हो सूरज नभ पर
जवाब देंहटाएंनिद्रा में गहन अँधेरा है,
सही कह गए परम सयाने
जब जागो तभी सवेरा है !
सुन्दर सार्थक और सराहनीय सृजन ।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-01-2022 ) को 'आने वाला देश में, अब फिर से ऋतुराज' (चर्चा अंक 4312) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार !
हटाएंमन पर छाप छोड़ने वाली रचना। सराहनीय ।
जवाब देंहटाएंकुदरत चेताती है हर पल
जवाब देंहटाएंहम आदतों के ग़ुलाम बने,
गुरु के वचनों को सदा भुला
मन्मुख होकर जीते रहते.... बहुत सुंदर सृजन।
बहुत सुंदर। सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर व सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, मीना जी, मिश्रा जी, अनीता जी, नितीश जी व मनीषा जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंयदि केवल भाव संप्रेषित करने वाली कोई विधा होती तो शब्दों को कभी माध्यम नहीं होना होता । नि: शब्द .....
जवाब देंहटाएंवाह! शब्दों के पार से भी आपकी प्रतिक्रिया पहुँच रही है अमृता जी!
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