एक हँसी भीतर जागी थी
नयन टिके हैं सूने पथ पर
किसकी राह तके जाता मन,
खोल द्वार दरवाजे बैठा
किसकी आस किये जाता मन !
एक पाहुना आया था कल
एक हँसी भीतर जागी थी,
हुई लुप्त फिर घट सूना है
फिर से इक मन्नत माँगी थी !
हर आहट पर चिहुँक ताकता
किसकी बाट जोहता हर पल,
किसकी याद सँजोये बैठा
किसकी चाह किये जाता मन !
मिला बहुत पर नहीं वह मिला
बन बसंत जो साथ सदा हो,
स्वप्न नहीं बहलाते, ढूढें
शीतल सुरमय मधुर राग हो !
किसको यह आवाज लगाये
किसकी नजरों को तरसे मन,
फीका जग का हर रस लगता
किसकी प्यास भरे जाता मन !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-3-22) को "कविता को अब तुम्हीं बाँधना" (चर्चा अंक 4376 )पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंमनभावन सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनीता जी!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन ,भाव और शब्द दोनों गहरे उतरते से।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कुसुम जी!
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंभावभीनी ह्रदयस्पर्शी कविता ।
जवाब देंहटाएंपढ़ कर आत्मीयता-सी अनुभव हुई ।
अभिनंदन, अनीता जी ।
मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
ओंकार जी, नूपुर जी व अनीता जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!
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