एक हँसी भीतर जागी थी
नयन टिके हैं सूने पथ पर
किसकी राह तके जाता मन,
खोल द्वार दरवाजे बैठा
किसकी आस किये जाता मन !
एक पाहुना आया था कल
एक हँसी भीतर जागी थी,
हुई लुप्त फिर घट सूना है
फिर से इक मन्नत माँगी थी !
हर आहट पर चिहुँक ताकता
किसकी बाट जोहता हर पल,
किसकी याद सँजोये बैठा
किसकी चाह किये जाता मन !
मिला बहुत पर नहीं वह मिला
बन बसंत जो साथ सदा हो,
स्वप्न नहीं बहलाते, ढूढें
शीतल सुरमय मधुर राग हो !
किसको यह आवाज लगाये
किसकी नजरों को तरसे मन,
फीका जग का हर रस लगता
किसकी प्यास भरे जाता मन !
मनभावन सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनीता जी!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन ,भाव और शब्द दोनों गहरे उतरते से।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कुसुम जी!
हटाएंबहुत बहुत आभार कामिनी जी!
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंभावभीनी ह्रदयस्पर्शी कविता ।
जवाब देंहटाएंपढ़ कर आत्मीयता-सी अनुभव हुई ।
अभिनंदन, अनीता जी ।
मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
ओंकार जी, नूपुर जी व अनीता जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!
जवाब देंहटाएं