स्वप्न और जागरण
मन केवल नींद में ही नहीं देखता स्वप्न
दिवा स्वप्न भी होते हैं
जागती आँखों से देखे गए स्वप्न
बात यह है कि
खुद से मिले बिना नींद खुलती ही नहीं
या कहें कि खुद से बिछुड़ना
है एक स्वप्न
जो हर कोई देख रहा है
अंतर में जगना जब तक नहीं हुआ
सोया ही हुआ है
अर्थात् इस या उस स्वप्न में खोया ही हुआ है
हर कोई निर्माता है
निज सृष्टि का
दृष्टिकोण, विचार, मान्यताओं
और धारणाओं की दीवारों से
अपना महल सजाता है
देखकर भी असलियत को
नज़रें चुराता है
जो करणीय है वह कल पर टाले जाता है
हर कोई क़ैद है
अपने ही बनाए मायाजाल में
खुद से बिछुड़े हुए हम इक दिन तो जागेंगे
उस क्षण से पूर्व नहीं हमारे दुःख भागेंगे
स्वयं की अनंतता का अनुभव ही काम आएगा
भीतर का प्रकाश ही ज्योति दिखाएगा !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 29 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-3-22) को "क्या मिला परदेस जाके ?"' (चर्चा अंक 4384)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएं'अंतर में जगना जब तक नहीं हुआ
जवाब देंहटाएंसोया ही हुआ है' तभी तो सारी दुनिया जब सोयी रहती है, योगी अपने अंतर में जगा होता है। जीवन के गूढ़ दर्शन को उकेरती बहुत सुंदर रचना।
योग की ऐसी ही महिमा है, स्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंजीवन का यतार्थ बतलाती बहुत सुंदर रचना, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ज्योति जी!
हटाएंपाषाण-प्रतिमा में परमेश्वर तलाशने वाले समाज की चेतनता कभी जागने के बाद वाली अलसायी जम्हाई भी ले पाएगी .. लगता नहीं .. शायद ...
जवाब देंहटाएंहमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल ये गाने के लिए सिखाया गया है ... - "हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, एक दिन ..." .. पर कब आएगा वो "एक दिन" ये लबगि बतलाया नहीं गया .. शायद ...
अब गाना होगा हम होंगे कामयाब आज के दिन
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