सोमवार, जुलाई 4

अनजानी राहों से आकर


अनजानी राहों से आकर 

एक बात भूली बिसरी सी 
एक स्वपन चिर काल पुराना,
एक तंतु जो जोड़े तुझ से 
मधुरिम स्मृति की बहती धारा !

कोई  है जो छिपा हुआ भी 
जैसे चारों ओर बिछा है, 
शब्दों  की गहराई में जो 
मीलों मधुर मौन फैला है !

सुरभि लिए पवन  का झोंका
ज्यों उसका संदेशा लाये, 
कोयल की मधु कूजन जैसे 
सुमिरन की माला सी गाये !

कोई तार जुड़ा है जैसे 
मन क्यों उसकी राह ताकता,
अनजानी राहों से आकर 
सुधिया अपनी फिर भर जाता !

जीवन कोई बंद द्वार ज्यों 
अपनी ओर बुलाता सबको, 
ज्यों उज्ज्वल उपहार प्रीत का 
सहज बँट रहा पालो इसको !

15 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन कोई बंद द्वार ज्यों
    अपनी ओर बुलाता सबको,
    ज्यों उज्ज्वल उपहार प्रीत का
    सहज बँट रहा पालो इसको !

    न जाने यादों के तार किससे और कितने गहरे जुड़े हैं । बेहतरीन रचना ।

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    1. सुंदर व त्वरित प्रतिक्रिया हेतु आभार संगीता जी!

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०५-०७ -२०२२ ) को
    'मचलती है नदी'( चर्चा अंक-४४८१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. कोई तार जुड़ा है जैसे
    मन क्यों उसकी राह ताकता,
    अनजानी राहों से आकर
    सुधिया अपनी फिर भर जाता !
    ..ये तार ही तो है जो खींच ले जाते हैं हमें उस ओर

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  4. वाह अनुभूतियों के आदान प्रदान के लिये तार जुड़ना ही सबसे पहली और अनिवार्य बात है . बहुत गहरी और व्यापक अर्थ लिये सुन्दर कविता .

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    1. सुंदर प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार गिरिजा जी !

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