मिलन धरा का आज गगन से
काले कजरारे मेघों का
गर्जन-तर्जन सुन मन डोले,
छम-छम बरसा नीर गगन से
मलय पवन के सरस झकोले !
चहुँ दिशा से जलद घिर आये
कितने शुभ संदेश छिपाए,
आँखों में उतरे धीरे से
कह डाला सब फिर बह जायें !
उड़ते पत्ते, पवन सुवासित
धरती को छू-छू के आये,
माटी की सुगंध लिए साथ
हर पादप शाखा सहलायें !
ऊँचे, लंबे तने वृक्ष भी
झूमें, काँपें, बिखरे पत्ते,
छुवन नीर की पाकर प्रमुदित
मिलन धरा का आज गगन से !
ऊपरे नीचे जल ही जल है
एक हुए धरती आकाश,
खोयीं सभी दिशाएँ जैसे
कुहरे में डूबा है प्रकाश !