ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा
गहराई में जाकर देखें
एक धरा से उपजे हैं सब,
ऊँचाई पर बैठ निहारें
सूक्ष्म हुए से खो जाते तब !
रहे धरा पर उसको पीड़ा
ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा,
ज्यों निद्रा में सब खो जाये
स्वप्नों में भी मन बहलाये !
लेकिन एक अवस्था चौथी
जिसमें तीनों एक हुए हैं,
जगना, सोना, स्वप्न देखना
तीनों जहां विलीन हुए हैं !
वहीं ठिकाना मिला जिसे गर
सदा तृप्त, हर्षित हो गाए,
जुड़ अनंत ऊर्जा से निशदिन
तीनों में वह आये-जाये !