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सोमवार, अगस्त 28

महाकाल

महाकाल 


ओपेनहाइमर ने

 पूछा था एक दिन 

क्या होता है 

जब तारे मरते हैं ​​​​​​

शायद एक महाविस्फोट !!

बढ़ता ही जाता है गुरुत्वाकर्षण 

कि सब कुछ समेट लेता है अपने भीतर 

प्रकाश भी खो जाता है 

एक न एक दिन ठंडा होगा सूरज भी हमारा 

जिसकी नाभि में चल रहा है 

निरन्तर परमाणुओं का संलयन 

जीवन का स्रोत है जो आज 

कल महाकाल भी बन सकता है 

वह जानता था

 कि परमाणु बम भी 

एक छोटा सूरज है 

जो बनते ही विनाश की राह पर चल पड़ेगा 

कि मारे जा सकते हैं लाखों निरीह जन

जैसे जानते थे कृष्ण 

बचे रहेंगे केवल पांडव 

निर्णय लिया संहार का 

ताकि थम जाये युद्ध की लिप्सा 

जापान को महँगा पड़ा यह सबक़ 

पर सदा के लिए शांति प्रिय देश बना 

थम गयीं उसकी महत्वाकांक्षाएँ 

किंतु ओपनहाइमर

दोषी है या नहीं 

कौन करेगा इसका निर्णय 

एक वैज्ञानिक के नाते शायद नहीं 

एक मानव के नाते 

शायद हाँ !   

बुधवार, जून 21

योग दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ


योग दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ


योग दिवस की धूम है, सभी मनाते आज 

जीवन कैसे धन्य हो, छुपा योग में  राज 


सुख और शांति के लिए, जत्न  करे दिन रात 

योग करे से साध ली, ख़ुशियों  की बरसात 


योग कराता है मिलन, बिखरा मन  हो  एक 

जीवन फूलों सा खिले, मार्ग मिले जब नेक 


योग दिवस पर हर कहीं, मिलजुल हो अभ्यास 

समता बढ़े समाज में, अंतर में विश्वास 


सुख की बाट न जोहिये, भीतर इसकी ख़ान 

योग कला  को जानकर, पुलकित होते प्राण 


एक तपस्या, एक व्रत, अनुशासन है योग 

जीवन में जब आ जाय,  मिट जाये हर रोग 


महिमा योग  अपार है, शब्दों में न समाय

नित्य करे जो साधना, अंत: ज्ञान जगाये 


युग-युग से यह ज्ञात है, भुला दिया कुछ काल 

कृपा है  महाकाल की, पाकर  हुए  निहाल 

 


 


मंगलवार, जुलाई 26

महाकाल सँग इक हो जाएँ

महाकाल सँग इक हो जाएँ 


लय खोयी छूटा छंद आज 

जीवन में छाया महा द्वंद्व, 

कविता सोयी भाव अनमने 

कहाँ खो गया मधुर मकरंद !


समय पखेरू उड़ता जाता 

काल चक्र अनवरत चल रहा, 

आयु पोटली से रिस घटती  

बढ़ती कह नर स्वयं छल रहा !


भूल ग़या दिल जिन बातों को 

उन पर अब क्यों वक़्त बहाएँ, 

मन थम जाए समय थमेगा 

महाकाल सँग इक हो जाएँ !


शनिवार, मार्च 9

महाशिवरात्रि के अवसर पर शुभकामनाओं सहित



शम्भो शंकर हे महादेव


शूलपाणि, हे गंगाधर, हे महादेव, औघड़ दाता
हे त्रिपुरारी, शंकर शम्भो, हे जगनायक, जग के त्राता !

हे शिव, भोले, मृत्युंजय हे, तुम नीलकंठ, जटाधारी
हो आशुतोष, अनंत, अनादि, हे अडोल, नागधारी !

 हे अंशुमान, त्रिनेत्रधारी, अभयंकर, हे महाकाल
विश्वेश्वर, हे जगतपिता, हे सुंदर आनन, उच्च भाल !

कैलाशपति, हे गौरीनाथ, हे शक्तिमान, डमरू धारी
हे महारूद्र, काल भैरव, तुम भूतनाथ, गरल धारी !  

हे शार्दूल, हो तेजपुंज, हे सर्वेश्वर, नन्दीश्वर हे
त्रयम्बक, पशुपतिनाथ, हे आदिदेव हर हर हर हे !

हे विरूपाक्ष, निराकार, हे महेश, चन्द्रशेखर
सदाशिवं, हे चिदानंद, विशम्भर, हे शैलेश्वर !

भस्म विभूषित, करुणाकर, प्रलयंकर, सुंदराक्ष
हे विश्वात्मा, तुम जगतबीज, ताण्डवकर्ता, हे नटराज !  

महेश्वरा, त्रिभुवन पालक, काशीनाथ हे जगदीश्वर
नमोः नमः हे शम्भुनाथ, नमोः नमः हे सोमेश्वर !

तुम बहाते ज्ञान गंगा, मौनधारी तत्व हो तुम
हे अडोल पर्वत जैसे, कैलाश पति अमृत हो तुम !

विमल तुम्हारा मन भी, ज्यों शुभ्र श्वेत धवल हिम
अंतर्ज्योति से जलते भीतर, आकार है ब्रह्मांड सम !