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मंगलवार, दिसंबर 17

मन से कुछ बातें

मन से कुछ बातें



मन ! निज गहराई में पा लो, 

एक विशुद्ध हँसी का कोना 

 बरबस नजर प्यार की डालो 

बहुत हुआ अब रोना-धोना !


किस अभाव का रोना रोते 

 उपज पूर्ण से नित्य पूर्ण हो, 

 सदा संजोते किस कमी को

खुद अनंत शक्ति का पुंज हो !


स्वयं ‘ध्यान’ तुम ‘ध्यान’ चाहते 

लोगों का कुछ ‘ध्यान’ बँटाकर 

निज ताक़त को भुला दिया है 

इधर-उधर से माँग-माँग कर !


आख़िर कब तक झुठलाओगे 

अपनी महिमा के पर्वत को, 

नज़र उठाकर ऊपर देखो 

उत्तंग शिखर छूता नभ को !


रोज-रोज का वही पुराना 

छोड़ो भी अब राग बजाना, 

कृष्ण बने सारथी तुम्हारे 

कैसे  कोई चले  बहाना !




शुक्रवार, अप्रैल 26

पंछी इक दिन उड़ जाएगा

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 


जरा, रोग की छाया डसती 

मृत्यु, मुक्ति की आस बँधाये, 

पंच इंद्रियाँ शिथिल हुई जब  

जीवन में रस, स्वाद न आये !


कुछ करने की चाह न जागे  

फिर भी आशा देह चलाती, 

जीवन की संध्या बेला में  

पीड़ा उर में रहे सताती !


धन का मोह, मोह पदार्थ का 

अंतिम क्षण तक  रहता जकड़े,

ख़ुद की महिमा समझ न पाया 

मानव मरते दम तक अपने !


 ज्वाला क्रोध जलाया करती 

पहन मुखौटा जग से मिलता, 

कभी-कभी ही सहज प्रेम से 

अंतर कमल जीव का खिलता !


या निर्मल प्रेम संग मन में

काँटा भीतर चुभता रहता, 

भय का एक आवरण मन को 

भ्रमित करे, सुख हरता रहता !


सौ-सौ कष्ट सहे जाता है 

किंतु मोह अतीव जीवन से, 

पंछी इक दिन उड़ जाएगा 

बंधा हुआ जीव तन-मन से ! 


मोह मिटेगा, शांति मिलेगी, 

तोड़ा जब बंधन माया का, 

झुकी कमर, बलहीन हुआ तन 

पुनर्जन्म होगा काया का !


ख़ुशी-ख़ुशी जग विदा करेगा 

पाथेय प्रेम संग बांध दे, 

पथिक चला जो नयी राह पर 

शुभता से उसका मन भर दे !



बुधवार, जून 21

योग दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ


योग दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ


योग दिवस की धूम है, सभी मनाते आज 

जीवन कैसे धन्य हो, छुपा योग में  राज 


सुख और शांति के लिए, जत्न  करे दिन रात 

योग करे से साध ली, ख़ुशियों  की बरसात 


योग कराता है मिलन, बिखरा मन  हो  एक 

जीवन फूलों सा खिले, मार्ग मिले जब नेक 


योग दिवस पर हर कहीं, मिलजुल हो अभ्यास 

समता बढ़े समाज में, अंतर में विश्वास 


सुख की बाट न जोहिये, भीतर इसकी ख़ान 

योग कला  को जानकर, पुलकित होते प्राण 


एक तपस्या, एक व्रत, अनुशासन है योग 

जीवन में जब आ जाय,  मिट जाये हर रोग 


महिमा योग  अपार है, शब्दों में न समाय

नित्य करे जो साधना, अंत: ज्ञान जगाये 


युग-युग से यह ज्ञात है, भुला दिया कुछ काल 

कृपा है  महाकाल की, पाकर  हुए  निहाल 

 


 


सोमवार, अप्रैल 4

जो शून्य बना छाया जग में



जो शून्य बना छाया जग में 


जग जैसा है बस वैसा है 

निज मन को क्यों हम मलिन करें, 

जो पल-पल रूप बदलता हो 

उसे माया समझ नमन करें !

 

मन सौंप दिया जब प्रियतम को 

उन चरणों में ही झुका रहे,

फ़ुरसत है किसके पास यहाँ 

निज महिमा का ही हाथ गहें !

 

जो शून्य बना छाया जग में 

कण-कण में जिसकी आभा है, 

वह राम बना है कृष्ण वही 

उसका दामन ही थामा है !

 

जो जाग गया मन के भीतर 

वह  सिक्त सदा सुख सरिता में,

जग अपनी राह चला जाता 

वह ठहर गया इस ही पल में !


रविवार, जुलाई 5

गुरू प्राकट्य सूर्य समान

गुरू  प्राकट्य सूर्य समान

गुरु की गाथा कही न जाये
शब्दों में सामर्थ्य कहाँ है,
पावन ज्योति, विमल चांदनी 
बिखरी उसके चरण जहाँ हैं !

गुरू  प्राकट्य सूर्य समान
अंधकार अंतर का मिटाए,
मनहर चाँद पूर्णिमा का है 
सौम्य भाव हृदय में जगाए !

सिर पर हाथ धरे जिसके वह
जन्मों का फल पल में पाता,
एक वचन भी अपना ले जो
जीने का सम्बल पा जाता  !

महिमा उसकी अति अपार है
बिन पूछे ही उत्तर देता,
सारे प्रश्न कहीं खो जाते
अन्तर्यामी सद्गुरु होता !

दूर रहें या निकट गुरू के
काल-देश से है अतीत वह,
क्षण भर में ही मिलन घट गया
गूंज रहा जो पुण्य गीत वह !

पावन हिम शिखरों सा लगता
शक्ति अटल आनंद स्रोत है,
नाद गूंजता या कण-कण में
सदा प्रदीप्त अखंड ज्योत है !

वही शब्द है अर्थ भी वही
भाव जगाए दूसरा कौन,
अपनी महिमा खुद ही जाने
वाणी हो जाती स्वयं मौन !

निर्झर कल-कल बहता है ज्यों
गुरू से सहज झरे है प्रीत,
डाली से सुवास ज्यों फैले
उससे उगता मधुर संगीत !

धरती सम वह धारे भीतर
ज्ञान मोती प्रेम भंडारे,
बहे अनिल सा कोने-कोने
सारे जग को पल में तारे  !

मंगलवार, मार्च 24

हे !

हे !

तू ही जाने तेरी महिमा
मौन हुआ मन झलक ही पाकर,
छायी मधु ऋतु खोया पतझड़
अब न लौटेगा जो जाकर !

रुनझुन गुनगुन गूँजे प्रतिपल
बरस रही ज्योत्स्ना अविरत,
पग-पग ज्योति कलश बिखेरे
स्रोत अखंड अमी का प्रतिपल !

द्वार खुला है एक अनोखा
पार है जिसके मन्दिर तेरा,
हिमशिखरों सा चमचम चमके
आठ पहर ही रहे सवेरा !

टिमटिम दिपदिप उड्गण हो ज्यों
श्वेत पुष्प झर झर झरते हैं,
रूप हजारों तू धरता है
सौन्दर्य, रंग भरते हैं !

राज न कोई जाने तेरा
तुझ संग मिलना न हो पाए,
देख तुझे 'मैं' खो जाता है
'तू' ही बस तुझसे मिल पाए !