तब और अब
जब छोटा सा था जीवन अपना
दुनिया बहुत बड़ी लगती थी
जीवन का विस्तार हो गया
दुनिया छोटी हुई जाती है
कालाहांडी की बस्ती में
बैठ एक ग्रामीण भी देख सकता है
आज फुटबाल का विश्व कप
घर बैठे पा सकता है सब कुछ
दुनिया छोटी हुई जा रही है
और सिकुड़ता जा रहा है
आदमी का कद भी
उसी अनुपात में !
बंधती जा रही है
उसके दिल की सीमा भी
अब नहीं समाते एक ही घर में
दादी, बुआ, चाचा
चचेरे, ममेरे भाई-बहन नहीं खेलते एक आंगन में
छोटे हो गए हैं दिल सबके
और जेबें हैं कि भरती जातीं
दूर विदेश में बैठ दिल्ली (या मुंबई) के होटल
को उड़ा सकता है आतंकवादी
और एक बटन दबाते ही फट सकते हैं बम
बौनी होती जा रही संस्कृति में
सब कुछ कितना पास आ गया है
हाथ बढ़ाकर ले लो
जापान की घडियां, कारें और
मिल जाएँगी मोह्हले की दुकान में हर देश की वस्तुएं
पर नहीं मिलेंगे मानव
जो समेटे थे सागर सी गहराई
और हिमालय सी ऊंचाई
जिनमें समा जाता था पूरी मानवता का दर्द
जिनके सीने थे इतने विशाल
कि मिल जाती थी पूरे मुल्क की पीड़ा को पनाह
आज नेता अपने परिवार को नहीं सम्भाल पाते
देश की कौन कहे...
दुनिया छोटी हुई है जबसे, दिल भी...
बहुत सुन्दर..........एक एक बात सही है........दूरियों के कम होने से दूरियां और बढ़ गयी हैं........शानदार|
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना रिश्तों और दूरियों को परिभाषित करती हुई।
जवाब देंहटाएंबौनी होती जा रही संस्कृति में
जवाब देंहटाएंसब कुछ कितना पास आ गया है
हाथ बढ़ाकर ले लो
बहुत प्रैक्टिकल लिखा है आपने।
सादर
सब कुछ सिमट रहा है ... आपस के फासले बढ़ रहे हैं ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBahut achhi baat kahi hai aapne .
जवाब देंहटाएंBloggers' meet weekly me aap iska zikr payengi monday ko HBFI par .
बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
आज की सच्चाई को बयान करती एक यथार्थ कविता,जो कुछ सोचने को मजबूर करती है कि हम कहाँ आ गए.क्या हम सच में तरक्की कर रहें हैं .
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना । जैसे-जैसे दुनिया छोटी होती जाती दिल भी सिकुड़ते जा रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (६) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /आप हिंदी के सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना हैं /आज सोमबार को आपब्लोगर्स मीट वीकली
जवाब देंहटाएंके मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /