सोमवार, मई 7

रुकने से इंकार जो करे



रुकने से इंकार जो करे

जीवन की टेढ़ी राहों पर
अविरत रथ यूँ बढ़ता जाता,
रुकने से इंकार जो करे
 एक कारवां बनता जाता !

एक मुसाफिर सबके भीतर
एक तलाश सदा जारी है,
नई मंजिलें पा लेने की
एक ललक मन पर तारी है !

चलते नभ पर चाँद सितारे
घूमा करती निशदिन कुदरत,  
गतिमय नीर, अनल, अनिल भी
चलना ही श्वासों की फितरत !

दिव्य लोक का स्वप्न जगाएं
बाधाएं कितनी हों पथ पर,
चले यात्रा अंतर्मन की
सुस्ताएँ पल भर ही थक कर !

सत् की ओर चलें असत् से
अंधकार से जगे उजाला,
जीवन जब उत्सव बन महके  
लगे मृत्यु का रूप निराला !




6 टिप्‍पणियां:

  1. मन कर्मठता की ओर ले जाती सुंदर रचना .....बधाई अनीता जी ....

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  2. चल चला चल............

    बहुत सुंदर....

    सादर.

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  3. एक मुसाफिर सबके भीतर
    एक तलाश सदा जारी है,
    नई मंजिलें पा लेने की
    एक ललक मन पर तारी है !

    और बस जिंदगी इसी का नाम है.....!!

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    उत्तर
    1. पूनम जी, सच ही जिंदगी बस चलते रहने का नाम है.

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