खुद से भी तो मिलना सीखो
सद् गुरु कहते ‘हँसो हँसाओ’
खुद से भी तो मिलना सीखो,
जड़ के पीछे छिपा जो चेतन
उस प्रियतम को हर सूं देखो !
चलती फिरती है यह काया
चंचल मन इत् उत् दौड़ता,
भीतर उगते पुष्प मति के
चिदाकाश में वही कौंधता !
सत्य सदा एक सा रहता
था, है, होगा कभी न मिटता,
दृश्य बदलते पल-पल जग के
मधुर आत्मरस अविरल बहता !
दृष्टा बने जो बने साक्षी
निज आनंद महारस पाता,
राज एक झाँके उस दृग से
पूर्ण हुआ खुद में न समाता !
अनंत शुभकामनाये अनीता जी....
जवाब देंहटाएंप्यारी रचना
आभार.
अनु
बहुत सुंदर रचना .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..आभार अनीता जी..
जवाब देंहटाएंसत्य सदा एक सा रहता
जवाब देंहटाएंथा, है, होगा कभी न मिटता,
दृश्य बदलते पल-पल जग के
मधुर आत्मरस अविरल बहता !
...बहुत गहन और सार्थक प्रस्तुति...आभार
बिना गुरु के ज्ञान कहां से पावै!
जवाब देंहटाएंअनु जी, माहेश्वरी जी, मनोज जी, कैलाश जी, व संगीता जी आप सभी का स्वागत....आभार !
जवाब देंहटाएंदेरी के लिए माफ़ी......आपको भी हार्दिक शुभकामनायें.....जय गुरुदेव।
जवाब देंहटाएंगुरू को नमन..
जवाब देंहटाएंआपकी रचनायें दिव्य प्रकाश लिये होती हैं ...!!
जवाब देंहटाएंगुरु कृपा है ...आप पर ...!!