गुरुवार, जुलाई 12

आस एक अनपली रह गयी


आस एक अनपली रह गयी

एक कथा अनकही रह गयी
व्यथा एक अनसुनी रह गयी,
जिसने कहना सुनना चाहा
वाणी उसकी स्वयं सह गयी !

एक प्रश्न था सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
निद्रा उसकी स्वयं सो गयी !

एक चेतना व्याकुल करती
एक वेदना आकुल करती,
जिसने उससे बचना चाहा
पीड़ा उसकी सखी हो गयी !

एक प्यास अनबुझी रह गयी
आस एक अनपली रह गयी,
जिसने उसे पोषणा चाहा
अस्मिता भी कहीं खो गयी !

एक पुकार बुलाती थी जो
इक झंकार लुभाती थी जो,
जिसने उससे जुडना चाहा
घुलमिल उससे एक हो गयी !


18 टिप्‍पणियां:

  1. एक पुकार बुलाती थी जो
    इक झंकार लुभाती थी जो,
    जिसने उससे जुडना चाहा
    घुलमिल उससे एक हो गयी !
    ....बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं शुभकामनायें

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  2. सुख है एक छाँव ढलती आती है जाती है, दुःख तो अपना साथी है... बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  3. एक प्यास अनबुझी रह गयी
    आस एक अनपली रह गयी,
    जिसने उसे पोषणा चाहा
    अस्मिता भी कहीं खो गयी .....
    लाजबाब सुन्दर .........

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  4. एक चेतना व्याकुल करती

    एक वेदना आकुल करती,

    जिसने उससे बचना चाहा

    पीड़ा उसकी सखी हो गयी !

    यह रचना कहीं आपबीती सी लग रही है ... बहुत अपनी सी ...

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    उत्तर
    1. संगीता जी,यही पीड़ा तो मानव को आगे बढ़ने का बल देती है...

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  5. जिसने उससे बचना चाहा
    पीड़ा उसकी सखी हो गयी !

    बहुत खूबसूरत...
    सादर।

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  6. चल मनवा उस देश को, जहाँ नहीं हों काम।
    चैन-अमन के साथ में, मन पाये विश्राम।।

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  7. डॉ रूपचंद जी, संजय जी, अनु जी, पूनम जी, व अनुपमा जी, आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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  8. सुन्दर प्रस्तुति ...अनीता जी ...काफी सारी पंक्तियाँ दिल को छू गयी ...

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  9. bahut kuchh ankaha rah jata hai aur yahi akulahat hame yaha aamne-saamne khada kar deti hai.

    sunder shabdon me dhala is gehen bhaav ko.

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  10. अति सुन्दर और भावपूर्ण।

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