कैसे कोई बच सकता है 
पलकों पे थमे झट से न गिरे 
वे दो कतरे आँसू के झरे 
मन भीग गया.. 
प्राची में जब फूल उगे 
हिम शिखरों पर चांदी बिखरे 
पिघले सोना सागर में जब 
अवाक् हुआ मन भीग गया.. 
पर्वत पर छाया है किसकी 
यह तुमुलनाद नभ में किसका 
उन आँखों में यह कौन दिखा 
मुस्कानों में झलकें किसकी 
छोटा-छोटा खंड-खंड सा 
वह तो मिलता ही रहता है 
सोच यही मन भीग गया.. 
दर्पण में है सूरत किसकी 
झील में ज्यों चाँद गगन का 
छोटे छोटे अनुभव उसके 
पर सारा का सारा वह है 
बस देख यही मन भीग गया.. 
कैसे कोई बच सकता है 
वही-वही तो चारों ओर 
टुकड़ा-टुकड़ा खुद को देता 
टुकड़ों में वह ही पाता है 
वरना वह तो सदा बुलाए 
जान यही मन भीग गया.. 

 
हर जगह हर कण में बस वो ही वो है.....शानदार पोस्ट।
जवाब देंहटाएंदर्पण में है सूरत किसकी
जवाब देंहटाएंझील में ज्यों चाँद गगन का
छोटे छोटे अनुभव उसके
पर सारा का सारा वह है
बस देख यही मन भीग गया....बहुत ही खुबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति..
हर जगह बस वही वही है ...बहुत सुंदर रचना ... मन भीग भीग गया
जवाब देंहटाएंदर्पण में है सूरत किसकी
जवाब देंहटाएंझील में ज्यों चाँद गगन का
छोटे छोटे अनुभव उसके
पर सारा का सारा वह है
बस देख यही मन भीग गया..
प्रकृति का जो चित्रण आपके गीतों और कविताओं में मिलता है वह अनूठा होता है और और सोने पे सुहागा उसमें मानवीय संवेदनाएँ. बहुत सुंदर.
रचना जी, प्रकृति इतनी सुंदर है खासतौर पर असम में तो प्रकृति की सुंदरता चारों ओर बिखरी है..आभार!
हटाएंइस प्रकृति में, प्रकृति के कण कण में वो विराजमान है ...
जवाब देंहटाएंउसकी तरह यह रचना भी काफी सुंदर ...
bahut hi man ko chhu lene wali rachna
जवाब देंहटाएंनही बच सकी,ऐसी भावपूर्ण कविता पढ़ते ही मन भीग गया.
जवाब देंहटाएंसचमुच सब देखकर मन भीग जाता है ..
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति !!
इमरान, माहेश्वरी जी, उपासना जी, दीदी, संगीता जी, शिवनाथ जी, संगीता पुरी जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंवही-वही है चारों ओर, सारा का सारा वह है... बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआत्मा से निकली हुई अभिव्यक्ति .........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर........
संध्या जी, ललित मोहन जी, स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही भावमय करती प्रस्तुति।
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