गुरुवार, अगस्त 8

उस दिन

खनकती हुई सी इक याद, जैसे सुबह की धूप
नयनों में भर गया कोई, ज्यों चाँदनी का रूप

उस दिन

अचानक छा गये मेघ काले-धूसर
देखते ही देखते स्याह हो गया अम्बर
गरजने लगा इंद्र सेनापति सा
परचम लहराने लगे पवनदेव झूमकर
धरा उत्सुक थी स्वागत करने को
ऊंचे पर्वत भी घाटियों के दामन फैलाये
थे आतुर अमृत भरने को
पहले इक्का-दुक्का ही झरीं बूँदे
उस दोपहर
बरामदे में बैठ लगी जब वह सुनने
प्रकृति का मृदुल स्वर !
पर क्षणों की ही देर थी
तीव्र हो गया वेग वर्षा का
छप छप छपाक छपाक के सिवा
 न दे कुछ सुनाई, न आता था नजर
बूंदों के पार निहारा जब उसने
 नजर आती थीं बूँदें बस कुछ दूर तक
ऊपर तो था सपाट आकाश
मानो उसे हो ही न कोई खबर
मध्य में ही रचे जाता हो यह दृश्य
कोई अपने जादुई स्पर्श से
वह और बैठ न रह सकी  
प्रकृति के इस आह्लाद में शामिल होने से
वंचित स्वयं को कर न सकी
   हरियाली में नीचे भी जल था
 धाराएँ बरस रही थीं ऊपर से
भिगो रही थीं तन, मन को
 ही नहीं, उसके अन्तस् को
  सुखदायी वह जल का स्पर्श
 धरा की गोद कितनी कोमल
सिमट आया अस्तित्त्व उस क्षण उसकी आँखों में
  रेशा-रेशा सरस हो गया मेह में  
वह भाग बन गयी प्रकृति का
ज्यों पंछी, वृक्ष, लॉन की हरी घास और फूल
उस दिन जाना उसने
थी वह ध्वनि बढ़कर स्वर्गीय संगीत से
छुअन मखमली स्पर्श से !


13 टिप्‍पणियां:

  1. खनकती हुई सी इक याद, जैसे सुबह की धूप
    नयनों में भर गया कोई, ज्यों चाँदनी का रूप

    सिमट आया अस्तित्त्व उस क्षण उसकी आँखों में
    रेशा-रेशा सरस हो गया मेह में
    वह भाग बन गयी प्रकृति का
    वाह बहुत खूब सूरत है वह भाग बन गई कुदरत का। प्रकृति और पुरुष का अजब संगम हो गया।

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  2. सुखदाई ...एक एक शब्द ....
    बहुत सुंदर रचना अनीता जी ......!!

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    1. अनुपमा जी, वर्षा में भीगने का आनन्द अनोखा है..

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  3. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....

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  4. कोमल भावो से सजी सुन्दर रचना...

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  5. यशवंत जी, व माहेश्वरी जी आप का स्वागत व आभार !

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  6. प्रकृति की अनुपम छटा समेटे लाजवाब पोस्ट |

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  7. " कनक से दिन मोती सी रात सुनहली सांझ गुलाबी प्रात , मिटाता रंगता बारंबार कौन जग का वह चित्राधार " महादेवी वर्मा

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