मंगलवार, जनवरी 7

यह तो था अपना ही घर


यह तो था अपना ही घर

पलक बिछाए वह बैठा है
दोनों बाहें भी फैलाये,
एक कदम उस ओर बढ़ें तो  
बड़े वेग से वह भी आये !

प्रियतम का घर दूर नहीं था
राह भटक कर हमीं अभागे,
हाथ थाम कर लाया वह ही
जिस पल थे प्रमाद से जागे !

जाना पहचाना आलम था
यह तो था अपना ही घर,
धूल बहुत फांकी दुनिया की
कभी नजर न डाली भीतर !

एक उजाला मद्धिम मद्धिम
 राग मधुर कोई बजता था,
शांति अगर सी फ़ैल रही थी
प्रेम दीप बन के जलता था !

नहीं छलावा नहीं झूठ का
नहीं लोभ का नाम वहाँ था,
नहीं अभाव न मांग थी कोई
मस्ती का इक जाम वहाँ था ! 

15 टिप्‍पणियां:

  1. जाना पहचाना आलम था
    यह तो था अपना ही घर,
    धूल बहुत फांकी दुनिया की
    कभी नजर न डाली भीतर !............वाह, बहुत ही सुंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति !!

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  2. मन को शांति देते भाव ....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!

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  3. बहुत बढ़िया और भावपूर्ण ...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो

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  4. राह भटक कर हमीं अभागे....सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....

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  5. कल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  6. वाह ! अगाध शान्ति के भाव से भरती मधुर मरहम सी रचना ! बहुत सुंदर !

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  7. रीना जी, साधना जी, अमृता जी, अनुपमा त्रिपाठी जी, यशवंत जी, देवेन्द्र जी, इमरान, ऋता जी, प्रसन्नजी,कालीपद जी, माहेश्वरी जी, वीरू भाई जी, ललित जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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