शनिवार, सितंबर 20

मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा

मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा  



पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा
काँटों को भी हार बनाना होगा !

चाहे जितनी हों बाधाएँ
मंजिल मिल-मिल कर खो जाये,
अंगारों से द्वार सजाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

मुस्कानों का भ्रम न पालें
महा रुदन का अमृत ढालें
मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा  
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

सुख भरमाता आया जग को
छलता आया है हर पग को,
 दुःख का उर को गरल पिलाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

सच से आँखें मूंदे बैठे
अंधों बहरों को इस जग में
शंखनाद का रोर सुनाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

सुख की बात करें क्या उनसे
दुःख की जो चादर ओढ़े हैं,
करुणा का इक राग बहाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

तमस छा रहा हो जब जग में
अंधकार खड़ा हो मग में,
ज्योति पर अधिकार जताना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !



6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भावों से रचाई है ये रचना....बधाई

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  2. बहुत गहरे भाव । हमारे चिन्तन व दर्शन का मूल यही स्वर है ।

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  3. वाह...बहुत बहुत सुन्दर.....

    लयबद्ध और सार्थक भाव लिए सुन्दर रचना...
    सादर
    अनु

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  4. आशा विश्वास और स्वयं पे भरोसा रखने और आत्मविश्वास पैदा करती हुयी ओजस्वी रचना ....

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  5. मुस्कानों का भ्रम न पालें
    महा रुदन का अमृत ढालें
    मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा
    पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

    सशक्त ज्ञेय (गेय )अभिव्यक्ति

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  6. संजय जी, अनु जी, दिगम्बर जी,वीरू भाई और गिरिजा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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