शुक्रवार, मार्च 13

पास आकर दूर जाये

पास आकर दूर जाये

तितलियाँ जो उड़ रही हैं
गंध पीतीं रस समोती,
रंगे जिसने पर सजीले
उस अलख के गीत गातीं !

मौन ही होता मुखर
संग पवन जब डोलती हैं,
नृत्य झलके हर अदा में
शान से पर तोलती हैं !

हैं अनोखी कलाकृतियाँ
चमचमाते रंग धारे,
सूर्य रश्मि छू रही ज्यों
चित्र कोई कर उकेरे !

रंग बदलें धूप-छाहीं
पारदर्शी पंख भी हैं,
जाने किसकी राह देखें
लाल बुंदकी से सजी हैं !

पंख रक्तिम हैं किसी के
पीतवर्णी धारियां भी,
श्याम, नीले पर किसी के
श्वेत बूँदें तारिका सी !

हैं हजारों रूप सुंदर
रंग भी लाखों किसिम के,
बैंगनी, नीली, सजीली
पर गुलाबी हैं किसी के !

श्वेत वर्णी भी सुहाए
पास आकर दूर जाये,
बैठ जाती पर समेटे
पुष्प का आसन बनाये !

शोख रंगीं छटा जिनकी
ज्यों रंगोली हो सजी,
रंग घुले हैं इस अदा से
होड़ हो ज्यों पुष्प से ही !

विविध हैं आकार अनुपम
लघु काया है लुभाती,
मन उड़े जाता उन्हीं संग
प्रीत उनसे बंध लजाती !


कला उसकी राज खोले
मूक है जो कुछ न बोले,
तितलियों, फूलों के चर्चे
उपवनों में गीत घोलें !

आँख जैसे हो परों पर
देखती हों सब नजारे,
घूमती पुष्पों के ऊपर
नजर उनकी ज्यों उतारें !


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