बुधवार, जनवरी 31

लहर उठी


लहर उठी

सहज तरंगित उच्छल ऊर्जित
लहर उठी विराट सागर में,
लक्ष्य नहीं है कोई जिसका
गिर जाती विलीन हो पल में !

छूता कोई दृश्य गगन का
कभी धरा हँसती अंतर में,
निज सृष्टि शुभा देख-देख ही
मुग्ध हो रहा कोई जग में !

कर वीणा तारों को झंकृत
हर्षित हो निनाद उपजाता,
सहज जगे जब पग में नर्तन
उर के भावों को दर्शाता !

 एक सत्य ही प्रकटे सब में
भाव जगें अंतर में ऐसे,
सहज ऊर्जा रवि बिखराता
 कृत्य झरें ऐसे ही जग में !

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