गुरुवार, सितंबर 19

आशा फिर भी पलती भीतर



आशा फिर भी पलती भीतर


राहें कितनी भी मुश्किल हों
होता कुछ भी ना हासिल हो,
आशा फिर भी पलती भीतर
चाहे टूट गया यह दिल हो !

प्यार की लौ अकम्पित जलती
गहराई में कलिका खिलती,
नजरें जरा घुमा कर देखें
अविरल गंगा पग-पग बहती !

महादेव रक्षक हों जिसके
रोली अक्षत हों मस्तक पे,
किन विपदाओं से हारे वह
भैरव मन्त्र जपा हो मन से !

सृष्टि लख जब याद वह आये
बरबस मन अंतर मुस्काए,
अपनेपन की ढाल बना है
बाँह थाम वह पार लगाये !

सुख-दुःख में समता जो साधे
मन वह बोले राधे-राधे,
हँसते-हँसते कष्ट उठाये
सदा समर्पित जो आराधे !

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...बेहद सकारात्मक सराहनीय सृजन👍

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  2. वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
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  3. नजरिया बदलते ही सब अपने आप ठीक होने लगता है. सुंदर रचना

    पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और

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  4. अविरल गंगा में डूबाती रचना के लिए आभार ।

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    1. सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका भी आभार !

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  5. चंद लब्जों में...कितना कुछ बयाँ कर दिया आपने!...बहुत खूब

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  6. सुन्दर रचना ...
    समर्पित है आशा, उम्मीद और आध्यात्म का भाव लिए ...
    महादेव जिसके साथ हों वो तो सदेव विजेता है ...

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    1. सही कह रहे हैं आप..देवों का देव जब किसी के साथ हो तो उसकी सदा जय ही होगी..

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