सोमवार, मार्च 23

महामारी

महामारी 


कितना अलग मिजाज है आजकल दुनिया का 
न कोई किसी से मिलता है 
न कहीं आता जाता है 
झूठ-मूठ लड़ाई का बहाना बनाकर 
बैठे हैं अलग-अलग कमरों में 
नजरबंद हैं विदेश से आये लोग 
कोई नहीं पूछता, मेरे लिए क्या लाये 
बल्कि मौन रहकर ही सवाल उछालता है
इटली क्यों गए थे, भला यह भी कोई समय है 
स्पेन घूमने जाने का 
सोसाइटी में होने लगी है खुसर-पुसर 
फलां नम्बर में रात कोई आया है 
जाने कोरोना अपने साथ लाया हो ! 
सड़कें सूनी हैं, बच्चे हैरान हैं 
घर में बैठे रहने का मिला फरमान है 
जितना चाहे खेलो पर घर पर ही 
लेकिन आँख बचाकर वे निकल जाते हैं 
वीरान गलियों में साइकिल चलाते हैं 
कोरोना के भय से नींदें उड़ गयी हैं 
प्रधानमंत्री के शब्द जैसे मरहम लगाते हैं 
भीतर सोया जोश जगाते हैं 
हाँ,  लगेगा जनता कर्फ्यू 
और बजेंगी थालियाँ भी 
उन जांबाजों के लिए जो बने हैं रक्षक 
समाज और राष्ट्र के प्रहरी 
कुछ न बिगाड़ पाएगी भारत का
निगोड़ी  यह महामारी !  

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