एकम् सत्य
चाहो किसी भी रूप में
किसी आकार में
अथवा अरूप या निराकार
वह सबका है
नहीं अधिकार किसी को भी
करे आहत अन्य की भावना
आक्रांता बन तोड़े आस्था के स्थल
मुखरित होता है वह चैतन्य
भक्ति, करुणा और प्रेम में
फिर क्योंकर एक का समर्पण
दूसरे की आँख में खटकता है
सत्य एक ही है पर अनेक मार्गों से मिलता है
किसी पुष्प गुच्छ की मानिंद
गुँथे हैं सभी पंथ और मत
मानवता के मंदिर में
हरेक अपनी महिमा में आप ही महकता है
फिर भी पूरक है दूजे का
विरोधी नहीं
जिस दिन स्वीकार होगा
उसी प्रकार जैसे
स्वीकारते हैं संगीत और शिल्प
आनंद लेते हैं विविधताओं का
हर पंथ अनूठा है
सार सबका एक है
प्रेम जगाना है अंतर में
आनंद उसी की परिणति है !
बहुत सही बात कही है आपने। सादर बधाई।
जवाब देंहटाएंजैसे सारी धाराएं सागर में मिलती है वैसे ही सारे पंथ भी उसी अनंत सागर में मिलते हैं । अति सुन्दर कथ्य ।
जवाब देंहटाएंस्वीकारते हैं संगीत और शिल्प
जवाब देंहटाएंआनंद लेते हैं विविधताओं का
हर पंथ अनूठा है
सार सबका एक है
प्रेम जगाना है अंतर में
आनंद उसी की परिणति है !
अत्यंत सुंदर रचना...
हृदयस्पर्शी 🌹🙏🌹
'किसी पुष्प गुच्छ की मानिंद
जवाब देंहटाएंगुँथे हैं सभी पंथ और मत'
सत्य यही है।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंमानवता के मंदिर में
जवाब देंहटाएंहरेक अपनी महिमा में आप ही महकता है
फिर भी पूरक है दूजे का
विरोधी नहीं...सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति..।
आप सभी सुधीजनों का हृदय से आभार !
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