अबूझ है मन
मुँह लगे सेवक सा कब
हुकुम चलाने लगता है
पता ही नहीं चलता
कभी सपने दिखाता है मनमोहक
कि आँखें ही चौंधियाँ जाएँ
और कभी आश्वस्त करता है
पहुँचा ही देगा मंजिल पर
मन की मानें तो मुश्किल
मनवाएँ उससे यह उससे भी बड़ी
बुद्धि भी है थक-हार कर खड़ी
नींद में दुनिया की सैर कराता है
जागने पर माया के फेर में पड़वाता है
मासूम सा बना भजन भी गाता है
कभी पुरानी गलियों में लौटा ले जाता है
यह पिंजरे का पंछी
उड़ना ही भूल गया
इक आस की सींक पर बैठे-बैठे झूल गया
इसको तो बस देखते भर रहना है
न भागना इससे, न डराना
निरपेक्ष होना है
यह मन भी उसी की माया है
जिसने यहाँ सभी को जाया है !
यह मन भी उसी की माया है
जवाब देंहटाएंजिसने यहाँ सभी को जाया है !
बेहद गहनतम भाव ... अनुपम सृजन
स्वागत व आभार सदा जी !
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी अविराम उपस्थिति प्रेरक है
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु स्वागत व आभार !
हटाएंयह मन भी उसकी माया है ... सत्य कहा है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है ...
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात कही...यह पिंजरे का पंछी
जवाब देंहटाएंउड़ना ही भूल गया ...अत्यंत संदर रचना अनीता जी
गहन भावों से सजी सुन्दर रचना । नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल। मन ऐसा ही होता है। बहुत सुंदर सृजन। आपको नये साल 2021 की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनीता जी, इस अच्छी सी कृति हेतु बधाई स्वीकार करें। ।।।।
जवाब देंहटाएंआगामी नववर्ष की अग्रिम शुभकामनायें। ।।
यह मन भी उसी की माया है
जवाब देंहटाएंजिसने यहाँ सभी को जाया है !
जीवनदर्शन से परिपूर्ण बहुत सुंदर रचना...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹
अलकनंदा जी, मीना जी, वीरेंद्र जी, पुरुषोत्तम जी व डा शरद जी अप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंठीक कहा अनीता जी आपने । इसीलिए मन को जीतना ज़रूरी है । मन की शांति उसी को प्राप्त होगी जो उस पर विजय पा लेगा । उसे हुक्म चलाने वाला मुँह लगा सेवक नहीं बनने देगा ।
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