बीज एक यात्रा
सुबह बीज है
जिस पर दिन का फल लगता है
ऐसे ही जैसे शैशव बीज से
जीवन लता फैलती है
वर्तमान है वह बीज
जिसमें भावी विशाल वटवृक्ष छिपा है
सुबह यदि खो गयी
तंद्रा-अलस में डूबी
तो दिन उखड़ा-उखड़ा सा रहेगा
अधूरापन सताएगा
शैशव को नहीं संभाला गया
कोमल किन्तु सुदृढ़ हाथों से
न हुआ संस्कारित तो जीवन दिशाहीन हो
इसमें अचरज ही कैसा ?
बच्चे जो पलते हैं सड़कों पर
कठोर होता है बचपन जिनका
क्या बदल नहीं जाएंगे उद्दंड युवा और उदास वयस्कों में
वर्तमान के बीज से ही भावी पनपता है
यदि आज हो रहा है तृप्ति का अहसास सार्थक कृत्यों द्वारा
तभी कल बाहें फैलाए मिलेगा
कर्मशील है अब तो कल भी हाथ काम करते-करते ही विदा लेंगे
वर्तमान मनु है तो भविष्य देव
आज पुरुषार्थ है तो भावी प्रारब्ध
जैसा दिन होगा रात होगी वैसी
ऊर्जा से भरा दिवस ही विश्राम से भरी रात्रि का जनक है !
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सही और अच्छा लिखा है, बधाई.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुंदर, अगर बीज का पालन पोषण सही नहीं होगा तो वो सुन्दर वृक्ष कैसे बन सकता है,बेहद खुबसूरती से समझाया है आपने,सादर नमस्कार अनिता जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूबसूरती से बीज को जीवन संदर्भ से जोड़कर प्रस्तुत किया आपने..।सुंदर सृजन.।
जवाब देंहटाएंहर शब्द में जो भाव प्रकट हो रहा है वह आत्म सृजन की ओर अग्रसर कर रहा है और आप हाथ थामे हुई हैं । आभार ।
जवाब देंहटाएंवर्तमान के बीज से ही भावी पनपता है
जवाब देंहटाएंयदि आज हो रहा है तृप्ति का अहसास सार्थक कृत्यों द्वारा
तभी कल बाहें फैलाए मिलेगा
सटीक एवं सुन्दर सृजन....
बहुत सुंदर सार्थक चिंतन ।
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण।